बदलती राहें बदलती राहें
फिर चाहे दोनों की राहें ही अलग अलग क्यों न हो फिर चाहे दोनों की राहें ही अलग अलग क्यों न हो
सिड जैसे छलिया की मीठी-मीठी बातों में फंसकर उसे अपना दिल दे बैठी थी। सिड जैसे छलिया की मीठी-मीठी बातों में फंसकर उसे अपना दिल दे बैठी थी।
यही सोच कर कभी भी डर जाता हूँ क्या होगा यदि सच्च में विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली ! यही सोच कर कभी भी डर जाता हूँ क्या होगा यदि सच्च में विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ल...